🌹बसंत की सुहानी रात🌹
🌹वो बसंत की रात सुहानी 🌹 वो बसंत की रात सुहानी काले बादल छाये थे कड़क रही थी बिजली नभ मे तारे नही दिखाये थे वर्षा भी घनघोर हुई पर हमने फेरे खाये थे हवन वेदी पर अग्नि थी पर हम दोनो ठिठुराये थे हाथ थाम कर इक दूजे का बस थोड़ा गरमाये थे भरा हुआ खुशियो का पल था फूले नही समाये थे बैठे टीन सैड़ के नीचे हमने फेरे खाये थे चौबीस जनवरी रात सुहानी भांवर गीत सुहाये थे वर्ष सतत्तर घोड़ी बैठे दुल्हन के घर आये थे ठण्ड भरा वो दिन था सारा हिम्मत खूब दिखाये थे दुल्हा बनकर उस दिन हमने बचन सात दोहराये थे यही कहानी ऋतु बसंत की अब तक नही भुलाये थे कॉपीराइट © भीकम जांगिड़ कवि भयंकर