🪱जहरीली नागिन 🪱
भरी हो जहर से नागिन लपा लप जीभ करती हो जन्म देती संपोलो को घूंट विष की पिलाती हो लपेटे पूंछ मे अग्नि घरो को ही जलाती हो मारती फूंक भी जब तुम हवा विष की बनाती हो गड़ा कर दांत जहरीले सभी को मार देती हो घरो की शाख को ही तो रेत मे तुम मिलाती हो जहर सब को पिला कर के मौत की नींद देती हो कलम की धार पर ही तुम पलट कर वार करती हो कवि के नाम को ही तो सदा बदनाम करती हो कवि तो नाम है शिव का नही सम्मान करती हो तीसरी आंख है रक्तिम् उसी से भी ना डरती हो बोल कड़वे बोल करके जहर अपना उगलती हो भरी हो जहर से नागिन लपा लप जीभ करती हो कॉपीराइट © भीकम जांगिड़ कवि भयंकर